✍️रिपोर्ट- कृष्ण कुमार |
बिहार का कोसी क्षेत्र - जिसमें बिहार, सुपौल, मधेपुरा, अररिया, किशनगंज और जिले शामिल हैं - हर साल शारदीय नवरात्रि के अवसर पर एक अद्भुत धार्मिक और सांस्कृतिक रंग में रंगा जाता है। दुर्गा पूजा यहां केवल एक धार्मिक पर्व नहीं है बल्कि यह समाज, संस्कृति, उद्योग और भावनाओं को जोड़ने वाला सबसे बड़ा उत्सव बन गया है।
इतिहास और आस्था की गहरी जड़ें
कोसी क्षेत्र में दुर्गा पूजा की शुरुआत बंगाल और मिथिला संस्कृति से हुई।
कहा जाता है कि अंग्रेजी हुकूमत के दौर में जब बंगाल और बिहार एक ही प्रांत का हिस्सा थे, तब यहां घर-घर में दुर्गा पूजा की परंपरा थी। आज इस पर्व पर यहां लोगों की धार्मिक पहचान और सामूहिक आस्था बनती है।
शारदीय नवरात्रि के नौ दिन तक:
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गाँव-गाँव में अनोखे कीर्तन और देवी महोत्सव होते हैं।
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घर में कलश स्थापना, उपवास और विशेष पूजा होती है।
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महिला भक्ति गीत गाकर पूरे वातावरण को आध्यात्मवादी बना देती है।
यह आस्था कोसी के हर छोटे-छोटे गांव और बस्ती में गहराई से महसूस की जाती है।
भव्य एवं भव्य सजावट
कोसी क्षेत्र में दुर्गा पूजा के दौरान शहरों और मंदिरों में भव्य सजाएं दी जाती हैं।
बिहार, सुपौल और मधेपुरा में ये प्रतियोगिताएं आधारित होती हैं-
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बांस, कपड़े और मिट्टी से बने इको-फ्रेंडली सामान
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मिथिला पेंटिंग और लोक कला से साजी कारीगर
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आधुनिक प्रकाश व्यवस्था और झिलमिल सजावट
यहां केवल मां दुर्गा के दर्शन का स्थल ही नहीं बल्कि लोक-संस्कृति और लोकतंत्र का मंच भी बन गया है।
एकल एकता का प्रतीक
कोसी क्षेत्र में दुर्गा पूजा की सबसे बड़ी लूटी यह है कि यह मनोवैज्ञानिक एकता और भाईचारे का सबसे मजबूत उदाहरण है।
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वस्तु बनाने में हर वर्ग और हर धर्म के लोग सहयोग करते हैं।
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भोग वितरण में और युवा समूह काम करते हैं।
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सुरक्षा और अनुशासन में छात्र और स्थानीय संगठन आगे रहते हैं।
यह पर्व सिद्ध करता है कि जब समाज एकजुट होता है, तो हर आयोजन आस्था और उत्साह का महाकुंभ बनता है।
आर्थिक अध्ययन एवं रोजगार का अवसर
कोसी क्षेत्र में दुर्गा पूजा के समय स्थानीय उद्योग में नई जान आ जाती है।
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मूर्तिकार, रेस्तरां डिजाइनर, डेकोरेशन कार और लाइटिंग वाले बहुत अच्छे काम करते हैं।
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मिठाई, कपड़े, खिलौने और आभूषणों की दुकानों में मेहमानों की भीड़ रहती है।
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परिवहन, छोटे-छोटे मझोले और छोटे व्यापारी भी रोजगार का स्रोत बन जाते हैं।
कई स्थानीय परिवारों के लिए यह पर्व सालभर की कमाई का सहारा बन जाता है।
लोक-संस्कृति का जीवंत मंच
दुर्गा पूजा के समय कोसी क्षेत्र की सड़कों और मैदानों में लोक-संस्कृति की जीवंत झलक देखने को मिलती है।
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नवरात्रि की रातों में जगराते और अनोखे भजन-कीर्तन
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लोक नृत्य, नाटक और नौटंकी का आयोजन
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स्कूल और कॉलेज के युवा मंच और दोस्तों में भाग लेते हैं
इन कार्यक्रमों में नई पीढ़ी को अपनी परंपरा और परंपरा से जोड़ने का अवसर मिलता है।
प्रवासी बिहारी और रेलवे स्टेशन
कोसी क्षेत्र के हजारों लोग काम के लिए दिल्ली, मुंबई, पंजाब और अन्य राज्यों में रहते हैं, लेकिन दुर्गा पूजा के समय घर लौटना नहीं भूलते।
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यह पर्व उनके लिए परिवार से मिलना और गांव की मिट्टी की मिठास में खो जाने का अवसर है।
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जो लोग आ नहीं सकते, वे फेसबुक, यूट्यूब और गेमिंग पर लाइव स्ट्रीमिंग के माध्यम से दर्शन करते हैं।
इस तरह यह पर्व प्रवासी बिहारियों के लिए साइंटिफिक पुल का काम करता है।
प्रशासन की व्यवस्था और सुरक्षा
कोसी क्षेत्र में दुर्गा पूजा के समय प्रशासन भी पूरी तरह से चौकन्ना रहता है।
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बड़े पैमाने पर सामान और मेलों में सीसीटीवी और दर्शन से निगरानी
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महिला सुरक्षा बल की विशेष तकनीक
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मेडिकल कैंप और नियंत्रण के लिए अलग व्यवस्था
इन ठेठों से लाखों लोग सुरक्षित और रेतीले मोरक्को में पूजा कर रहे हैं।
पर्यावरण एवं आधुनिकता का संगम
2025 की दुर्गा पूजा में कोसी क्षेत्र में दिखाया गया है कि परंपरा और आधुनिकता का संतुलन कैसे बनाया जा सकता है।
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इको-फ़्रेन्कली मूर्तियां
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डिजिटल दान के माध्यम से QR कोड
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सोशल मीडिया के आयोजन का प्रचार
यह सब कोसी क्षेत्र को एक मॉडल के रूप में पेश किया जा रहा है।
दिल को छूने वाली झलकियाँ
दुर्गा पूजा के दौरान कोसी क्षेत्र में ऐसे कई दृश्य देखने को मिलते हैं जो दिल को छू जाते हैं -
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गरीब परिवार अपनी छोटी-छोटी बचत से देवी के लिए भोग और फूल चढाते हैं।
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महिलाएं अपनी मेहनत से मंदिर और रोजमर्रा की सफाई करती हैं।
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बच्चे के नए स्कूल के महल में ख़ुशी-ख़ुशी झूला झूलते हैं।
इन दृश्यों में मां दुर्गा के प्रति सच्ची भक्ति और समाज की एकता की झलक है।
निष्कर्ष: कोसी क्षेत्र की पहचान है दुर्गा पूजा
कोसी क्षेत्र की दुर्गा पूजा केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि आस्था, परंपरा, लोक-संस्कृति, उद्योग और शैक्षणिक एकता का संगम है।
पटना के प्रसिद्ध वैभवशाली होन, इतनी ही आत्मीयता पुतिन, सुपौल और मधेपुरा के गांव-गांव में दिखती हैं।
मां दुर्गा की आराधना के साथ कोसी क्षेत्र हर साल यह संदेश देता है कि -
“जहाँ परंपरा और आधुनिकता के साथ-साथ लोकधर्मी, जहाँ समाज मजबूत बनता है।”