बिहार चुनाव 2025: NDA में सीटों का बँटवारा फाइनल - क्या यह 'जुड़वा भाई' फॉर्मूला जीत की गारंटी है?
प्रकाशित तिथि: अक्टूबर 13, 2025 विषय: बिहार राजनीति, चुनाव, NDA गठबंधन
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की रणभेरी बज चुकी है, और सबसे बड़ी खबर राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) से आ रही है। लंबे समय से चल रही खींचतान और मंथन के बाद, अंततः NDA ने सीटों के बँटवारे का ऐलान कर दिया है। यह न सिर्फ़ एक चुनावी घोषणा है, बल्कि बिहार की राजनीति में एक नए समीकरण और संदेश का उदय भी है।
इस बार का बँटवारा पिछले चुनावों से कई मायनों में अलग और दिलचस्प है। आइए इस पूरे फ़ॉर्मूले को विस्तार से समझते हैं और विश्लेषण करते हैं कि यह गठबंधन की जीत की राह को कितना आसान या मुश्किल बनाता है।
NDA का फाइनल 'सीट-शेयरिंग' फॉर्मूला:
243 सीटों वाली बिहार विधानसभा के लिए NDA ने एक संतुलित, लेकिन कठोर फ़ॉर्मूला अपनाया है:
इस बँटवारे का सबसे बड़ा आकर्षण बीजेपी और जेडीयू को बराबर-बराबर 101 सीटें मिलना है। इसे "जुड़वा भाई" फॉर्मूले का नाम दिया जा रहा है।
समानता का संदेश: यह बँटवारा स्पष्ट करता है कि गठबंधन में दोनों बड़े दल समान रूप से महत्वपूर्ण हैं। यह उन अटकलों पर विराम लगाता है जिनमें कहा जा रहा था कि किसी एक पार्टी को छोटे भाई की भूमिका निभानी पड़ेगी।
सीटों का संतुलन: दोनों पार्टियों ने अपनी पिछली जीती हुई सीटों और मजबूत आधार वाले क्षेत्रों को साधने की कोशिश की है। नीतीश कुमार के सुशासन के चेहरे और बीजेपी के संगठनात्मक बल का यह मेल वोटरों को एक एकजुट विकल्प देगा।
2. चिराग पासवान का बड़ा दाँव: 29 सीटें
चिराग पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) को 29 सीटें मिलना सबसे बड़ा चौंकाने वाला कदम है।
पुनरुत्थान: पिछले चुनाव में अकेले लड़ने और बाद में गठबंधन में हुई उठापटक के बाद, 29 सीटें मिलना चिराग पासवान के लिए एक बड़ी राजनीतिक जीत है। यह संख्या उन्हें बिहार के युवा और दलित वोट बैंक पर अपनी पकड़ को और मजबूत करने का मौका देगी।
युवा शक्ति पर दाँव: बीजेपी और जेडीयू ने चिराग को इतनी सीटें देकर स्पष्ट संदेश दिया है कि वे युवा नेतृत्व को महत्व दे रहे हैं और 'फाइव-ईयर्स-इन-पॉलिटिक्स' (राजनीति में पांच साल) का फॉर्मूला इस बार उन पर लागू नहीं होगा।
3. छोटे सहयोगियों का सम्मान: मांझी और कुशवाहा
जीतन राम मांझी की HAM और उपेंद्र कुशवाहा की RLM को 6-6 सीटें मिली हैं।
दलित और ओबीसी समीकरण: इन दोनों छोटे दलों को साथ रखने से NDA का दलित (मांझी) और ओबीसी (कुशवाहा) समीकरण मजबूत होता है। ये सीटें गठबंधन को उन क्षेत्रों में पकड़ बनाने में मदद करेंगी जहाँ इन नेताओं का व्यक्तिगत प्रभाव है।
एकजुटता: यह दर्शाता है कि NDA अपने सभी पुराने साथियों को महत्व देता है और गठबंधन को एकजुट रखने के लिए तैयार है, जो विपक्ष के लिए एक बड़ी चुनौती होगी।
आगे क्या? बीजेपी की पहली लिस्ट पर सबकी नज़र
सीट बँटवारे के तुरंत बाद, अब सबकी निगाहें उम्मीदवारों के चयन पर टिकी हैं।
बीजेपी की सूची: सूत्रों के अनुसार, भारतीय जनता पार्टी आज अपने उम्मीदवारों की पहली सूची जारी कर सकती है। इस सूची में उन सीटों पर फोकस होगा जहाँ पार्टी को मजबूत स्थिति में हैं या जहाँ मौजूदा विधायकों के टिकट काटने की संभावना कम है।
'विनैबिलिटी' का मंत्र: माना जा रहा है कि इस बार टिकट बँटवारे में सिर्फ़ जातिगत समीकरण नहीं, बल्कि उम्मीदवार की "जीतने की क्षमता" (Winability) ही मुख्य आधार होगी।
बागी नेताओं पर चक्रव्यूह: इतना बड़ा बँटवारा होने के बाद, कई पुराने नेताओं के टिकट कटेंगे। NDA के दिग्गजों को इन संभावित बागी और विरोधी नेताओं से निपटने के लिए एक मजबूत चक्रव्यूह बनाना होगा ताकि वे गठबंधन को नुकसान न पहुँचा सकें।
निष्कर्ष: क्या यह 'अभेद्य' गठबंधन है?
NDA का यह सीट बँटवारा एक मजबूत, समावेशी और रणनीतिक कदम लगता है। बीजेपी और जेडीयू के बराबर सीटें मिलने से नेतृत्व को लेकर कोई विवाद नहीं रहेगा, वहीं चिराग पासवान को महत्वपूर्ण हिस्सेदारी मिलने से युवा और दलित वोट बैंक में उत्साह बढ़ेगा।
हालांकि, असली चुनौती अब शुरू होगी: सही उम्मीदवारों का चयन, बागियों को शांत करना और विपक्ष के महागठबंधन (यदि बनता है) का मुकाबला करना। बिहार के चुनावी दंगल में NDA ने अपना पहला दाँव मजबूती से खेला है, लेकिन जीत उसी की होगी जो जमीन पर अपने कार्यकर्ताओं को एकजुट करके यह संदेश देने में सफल रहेगा कि यह गठबंधन सिर्फ़ सीटों का नहीं, बल्कि बिहार के भविष्य का गठबंधन है।
आपकी राय क्या है? क्या NDA का यह सीट बँटवारा बिहार चुनाव में उनकी जीत सुनिश्चित करता है? अपनी राय कमेंट सेक्शन में जरूर बताएँ!
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