बिहार चुनाव 2025: दुर्गा पूजा पर पड़ रहा है राजनीतिक असर!
✍️रिपोर्ट -कृष्ण कुमार
बिहार में दुर्गा पूजा केवल धार्मिक पर्व नहीं, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक का प्रतीक है। हर साल नवरात्रि के दौरान गांव से लेकर शहर तक सामान सजाते हैं, देवी की मूर्तियां स्थापित करते हैं और भव्य जुलूस निकालते हैं। लेकिन जब राज्य में वामपंथियों की गरमाहट थी, तो यह पर्व राजनीति की गूंज से नहीं रहा। इस साल भी यही हो रहा है। आने वाले विधानसभा चुनाव की हलचल ने पूजा मंदिर से लेकर स्थानीय प्रशासन तक को प्रभावित किया है।
1. धार्मिक पर्व और स्टालिनवादी: क्यों अनोखे हैं मार्ग
लोकतंत्र में चुनाव जनता और नेताओं के बीच प्रत्यक्ष संपर्क का समय होता है। दूसरी ओर, दुर्गा पूजा जैसे बड़े धार्मिक आयोजन में लाखों लोग शामिल होते हैं। ऐसे में नेताओं के लिए यह अवसर बन जाता है कि वे जनता के बीच अपने सहयोगी शेयरधारक बन जाते हैं।
इस बार बिहार में जिस तरह का चुनाव और नवरात्रि लगभग एक साथ पड़ रहे हैं, वह दोनों एक-दूसरे से जुड़ गए हैं। पूजा- पंथ में नेताओं के दौरे, आयोजनों में उनकी मदद और मंचों पर उनके भाषण- सभी संप्रदायों के रंग के लिए हैं।
2. भगवान विष्णु पर चुनाव का असर
दुर्गा पूजा समितियाँ स्थानीय समाज का प्रतिनिधित्व करती हैं। मोहोब्बत में इन शैतानों पर नेताओं का ध्यान बढ़ जाता है। कई स्थानों पर नेताओं द्वारा आर्थिक मदद, रेस्तरां के उद्घाटन समारोह या जुलूस में शामिल होना शामिल है।
इससे दो प्रकार की उत्पत्ति होती है:
-
प्रोजेक्ट को आर्थिक सहयोग मिलता है, जिसका आयोजन भव्य होता है।
-
लेकिन समिति पर एक राजनीतिक प्रभाव भी पड़ता है, जिससे उसकी समितियाँ शामिल हो सकती हैं।
3. सरकारी नौकरी और सुरक्षा
चुनाव और बड़े धार्मिक आयोजन, दोनों ही प्रशासन के लिए चुनौती हैं। चुनाव के दौरान सुरक्षा आचार संहिता लागू होती है, जबकि पूजा के दौरान भीड़ प्रबंधन, यातायात और साफ-सफाई जैसी जिम्मेदारियां बढ़ जाती हैं।
इस प्रशासन बार को डुगुना काम करना पड़ रहा है - लेकोल, भगत और पूजा सामग्री सभी पर ध्यान दें। कई बारप्रेशर बढ़ाने और परीक्षकों के लिए जरूरी सामान और सुविधाओं का इसमें काफी इंतजार है।
4. राजनीति और आस्था का मिलन: लाभ और हानि
लाभ:
-
विद्यार्थियों की स्थापना से लेकर पूजा-पाठ तक की आर्थिक सहायता मिल सकती है।
-
जनता के मुद्दे नेताओं तक सीधे-सीधे नामांकन करते हैं।
-
सामाजिक एकता के संदेश को बढ़ावा दिया जाता है।
नुकसान:
-
धार्मिक भावना का राजनीतिक उपयोग स्पष्ट होता है।
-
पूजा स्थल प्रचार मंच में बदलाव किया जा सकता है।
-
समाज में ध्रुवीकरण की आपदा है।
5. आम जनता पर असर
आमतौर पर भक्त या नागरिक के लिए दुर्गा पूजा भक्ति और उत्सव का समय होता है। लेकिन जब हर इनवेस्टमेंट में नेताओं के पोस्टर, झंडे या बयान दिए जाते हैं, तो अनुशासन बदल दिया जाता है।
बहुत से आसान इसे पसंद नहीं करते। उन्हें लगता है कि नारियों में पूजा की पवित्रता खो जाती है। वहीं, कुछ लोगों का मानना है कि इससे नेता संस्कृति और धर्म के करीब अवसर का अनुभव करते हैं।
6. महिलाओं और सामानों की भागीदारी
दुर्गा पूजा में पारंपरिक रूप से महिलाओं और बच्चों का सक्रिय योगदान होता है। सैद्धान्तिक तानाशाही में भी उनकी भूमिका अहम हो जाती है। महिला स्वयंसेवी समूह और युवा क्लब, दोनों ही इस बार के कार्यक्रम और चुनाव में सक्रिय हैं।
इससे जहां राजनीतिक जागरूकता जागरूकता आती है, वहीं धार्मिक आयोजनों में भी नई ऊर्जा आती है।
7. सांस्कृतिक पहचान और राजनीतिक संदेश
बिहार की दुर्गा पूजा बंगाल से अलग होती हुई भी अपनी अलग पहचान रखती है। यहां लोकगीत, पारंपरिक हुंकारियां और स्थानीय कला का प्रयोग होता है। इस समय के नेताओं ने इस सांस्कृतिक पहचान को भी अपने भाषणों और घोषणाओं में शामिल किया है - जैसे 'हमारी संस्कृति को बचाएंगे', 'हम आपके पर्व को और भव्य हिमालय' आदि।
यह संदेश जापान को परमाणु रूप से जोड़ने का उपकरण बन जाता है।
8. वास्तुशिल्प का रख-रखाव आवश्यक है
लोकतंत्र में आस्था और राजनीति दोनों को अपने-अपने शब्दों में रहना चाहिए। पूजा-पाठ को बढ़ावा देना चाहिए कि वे किसी भी राजनीतिक दल का प्रचार मंच न बढ़ाएं। प्रशासन को भी समान नियम लागू करने चाहिए ताकि किसी को विशेष लाभ न मिले।
साथ ही, नेताओं को चाहिए कि वे धार्मिक आयोजनों का सम्मान करें, लेकिन उन्हें प्रचार का मंच न दें।
9. आगे का रास्ता
बिहार में चुनाव और दुर्गा पूजा दोनों ही उत्सव हैं। अगर दोनों के बीच संतुलन बना रहे तो यह समाज के लिए शुभ संकेत है। यह आवश्यक है:
-
पुजारियों की दूकान
-
उत्तर
-
जनता की जागरूकता
-
नेताओं की जिम्मेदारी
निष्कर्ष
दुर्गा पूजा आस्था, उत्सव और सामाजिक एकता का प्रतीक है। लोकतांत्रिक लोकतंत्र की ताकत है। जब ये दोनों एक साथ आएं तो सुपरस्टार भी हो सकते हैं और मौका भी।
बिहार में इस साल जो भी भावुक है, वह बताता है कि आस्था और राजनीति के बीच धूमिल होती जा रही है। समाज को यह तय करना होगा कि वह अपने पर्व को राजनीतिक रंग से अलग कर सके।
यदि नागरिक, नेता और प्रशासन सामूहिक साक्षात्कर से काम करते हैं, तो दुर्गा पूजा में अपनी पवित्रता और भव्यता दोनों को शामिल किया जा सकता है, और रहवासी भी लोकतांत्रिक संप्रदाय के साम्यवादी हो सकते हैं।
" अगर आपके इलाके में भी चुनाव और धार्मिक आयोजन से जुड़ी कोई खास कहानी है, तो हमें जरूर बताएं। TezBreaking24 मंच पर जरूर बताएं।"
बिहार चुनाव 2025
दुर्गा पूजा बिहार
बिहार चुनाव दुर्गा पूजा प्रभाव
बिहार चुनाव में दुर्गा पूजा
अरामी राजनीति और पूजा
बिहार में नवरात्रि 2025
बिहार दुर्गा पूजा महोत्सव
राजनीति और धार्मिक उत्सव
चुनाव और धार्मिक त्योहार